कभी दुनिया भर के विद्यार्थियों के लिए सर्वोच्च शैक्षणिक केंद्र माने जाने वाले अमेरिका में भारतीय छात्रों की भागीदारी इस वर्ष रिकॉर्ड स्तर पर घट गई है। वीज़ा प्रक्रिया से जुड़ी कठिनाइयों, कड़े सुरक्षा मानकों और भविष्य में रोजगार को लेकर बढ़ी अनिश्चितताओं ने भारतीय परिवारों को अन्य देशों की ओर रुख करने के लिए मजबूर कर दिया है।

नवीनतम रिपोर्ट्स के अनुसार, 2024-25 शैक्षणिक वर्ष तक भारतीय छात्रों के नामांकन में करीब 70% की गिरावट दर्ज की गई है। पिछले वर्ष जहां तकरीबन 3.75 लाख भारतीय छात्र अमेरिकी कैंपसों में अध्ययनरत थे, वहीं ताज़ा आंकड़े करीब 1.12 लाख तक सीमित हो गए हैं — यह गिरावट पिछले डेढ़ दशक में सबसे अधिक मानी जा रही है।
वीज़ा प्रक्रिया बना प्रमुख अड़चन
रिपोर्ट्स बताती हैं कि वीज़ा स्लॉट्स की कमी, इंटरव्यू डेट में लंबी प्रतीक्षा और मामूली दस्तावेजी गलती पर तत्काल अस्वीकृति जैसे कारणों ने छात्रों की राह कठिन कर दी है। कई युवाओं को दो या अधिक बार इंटरव्यू देने की नौबत आ रही है। इसके साथ ही एच-1बी वर्क वीज़ा की लॉटरी पद्धति ने भी परिवारों का भरोसा कमजोर कर दिया है, जिसके चलते एमआईटी और कार्नेगी मेलॉन जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भारतीय उपस्थिति में बड़े स्तर पर कमी दिखाई दी है।
दूसरे देशों की ओर बढ़ता रुझान
कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप अब भारतीय विद्यार्थियों के लिए अधिक आकर्षक गंतव्य बनकर उभरे हैं। इन देशों में आवेदन दर में तेज वृद्धि देखी गई है, जिसका मुख्य कारण शिक्षा के साथ स्थिर कैरियर और स्थायी निवास के स्पष्ट विकल्प माने जा रहे हैं।
परिवारों की सोच में व्यापक बदलाव
जहां कभी भारतीय समाज में “अमेरिका” ही शिक्षा और भविष्य की सफलता का अंतिम प्रतीक था, वहीं अब यह धारणा तेजी से बदल रही है। बढ़ती लागत, अनिश्चित माहौल और सुरक्षा से जुड़े सवालों ने परिवारों को अपेक्षाकृत सहज नीतियों वाले देशों की ओर मोड़ दिया है।
अमेरिका के लिए चेतावनी का संकेत
भारतीय छात्रों की लगातार घटती संख्या अमेरिकी शिक्षा प्रणाली के लिए सिर्फ आर्थिक नुकसान नहीं, बल्कि वैश्विक प्रतिभा से वंचित होने जैसी चुनौती भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अमेरिका ने जल्द ही नीतियों में सुधार नहीं किया, तो वैश्विक प्रतिभा का केन्द्र स्थायी रूप से बदल सकता है।


