नाबालिग की संदिग्ध मौत—हाई कोर्ट ने कहा, ’पहली अपील तकनीकी आधार पर खारिज नहीं की जा सकती’

दिल्ली पुलिस द्वारा दायर उस अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनवाई करने का फैसला किया है, जिसमें 2016 में नजफगढ़ में एक लग्जरी कार के भीतर नाबालिग लड़की की मौत को लेकर बरी किए गए दो आरोपियों को फिर से कटघरे में लाने की मांग की गई है। निचली अदालत ने इस पूरे प्रकरण को आत्महत्या माना था और 2019 में अभियुक्तों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था।
हत्याकांड की धाराओं के अलावा, हथियार अधिनियम और बाद में दाखिल पूरक आरोपपत्र में यौन उत्पीड़न के आरोप भी जोड़े गए थे। हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा कि मामला गंभीर प्रकृति का है और अपील में उठाए गए मुद्दे प्रथम दृष्ट्या सुनने योग्य हैं। अब इस पर दिसंबर में विस्तृत सुनवाई की जाएगी।
पीठ ने दोनों आरोपियों को 25-25 हजार रुपये के जमानती बॉन्ड संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष जमा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हत्या जैसे मामलों में पहली अपील का अधिकार तकनीकी देरी जैसे पहलुओं के कारण बाधित नहीं किया जा सकता। इसलिए 551 दिनों की देरी को माफ कर दिया गया।
हाई कोर्ट ने 11 नवंबर को यह टिप्पणी भी की कि फोरेंसिक रिपोर्ट, गवाहों की गवाही और अन्य सामग्री को देखने के बाद यह नहीं कहा जा सकता कि अपील में कोई उचित आधार नहीं है। यह आत्महत्या थी या हत्या—यह अंतिम निर्णय साक्ष्यों के विस्तृत मूल्यांकन के बाद ही होगा।
राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक रितेश बाहरी ने अदालत में पक्ष रखा। यह मामला 20 दिसंबर 2016 को घटी उस घटना से जुड़ा है जिसने उस समय पूरे इलाके को हिला दिया था।


