दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र की सेहत को लेकर चर्चाओं के बीच फिल्म जगत से एक दुखद समाचार आया है। हिन्दी सिनेमा की वरिष्ठतम अभिनेत्रियों में शुमार कामिनी कौशल का 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे लंबे समय से स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रही थीं। अपने बेहतरीन अभिनय और सहज शैली के कारण कामिनी कौशल ने हिंदी फिल्मों में एक खास पहचान बनाई। बतौर हीरोइन चमकने के बाद उन्होंने मां के किरदारों में भी गहरी छाप छोड़ी।

लाहौर में बिता बचपन
24 जनवरी 1927 को लाहौर में प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री प्रोफेसर एस.आर. कश्यप के घर जन्मी कामिनी कौशल का असली नाम उमा कश्यप था। छह भाई-बहनों में सबसे छोटी उमा के जीवन में मुश्किलें जल्दी आ गईं—सिर्फ सात साल की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया। पढ़ाई में तेज उमा ने मात्र दस वर्ष की उम्र में अपना कठपुतली थिएटर शुरू कर दिया था। इसी दौरान उन्होंने आकाशवाणी के रेडियो नाटकों में भी काम किया।
रेडियो पर उनकी आवाज़ सुनकर फिल्ममेकर चेतन आनंद इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उमा को अपनी फिल्म नीचा नगर का प्रस्ताव दिया। चूंकि चेतन आनंद की पत्नी का नाम भी उमा था, इसलिए फिल्म के लिए उमा कश्यप का नाम बदलकर कामिनी रखा गया।
20 साल की उम्र में कामिनी बनीं स्टार
कामिनी कौशल का फिल्मी सफर 1946 में नीचा नगर से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने रूपा का किरदार निभाया। यह फिल्म 29 सितंबर 1946 को कान्स फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई और उसे ‘गोल्डन पाम’ से सम्मानित किया गया।
अपने करियर के शुरुआती दौर में ही कामिनी कौशल ने स्टारडम हासिल कर लिया था। बाद के वर्षों में उन्होंने मनोज कुमार सहित कई बड़े कलाकारों की ऑन-स्क्रीन मां की संवेदनशील भूमिकाएं निभाकर खूब सराहना बटोरी।
यादगार फ़िल्में
कामिनी कौशल ने कई कालजयी फिल्मों में अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरा, जिनमें शहीद (1948), नदिया के पार (1948), आग (1948), जिद्दी (1948), शबनम (1949), आरजू (1950), बिराज बहू (1954) जैसी फिल्में प्रमुख हैं।
बिराज बहू के लिए उन्हें 1954 में फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार से नवाज़ा गया।
आखिरी वर्षों में भी वे सक्रिय रहीं—कबीर सिंह में शाहिद कपूर की दादी और चेन्नई एक्सप्रेस में शाहरुख खान की दादी के रूप में उन्होंने नई पीढ़ी तक अपनी पहचान बनाई।


