महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में कुपोषण की वजह से लगातार हो रही शिशु मौतों पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की है। अदालत ने इस स्थिति को “अत्यंत गंभीर और चिंताजनक” बताते हुए कहा कि सरकार का रुख “लापरवाह और असंवेदनशील” प्रतीत होता है। न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति संदेश पाटिल की खंडपीठ ने जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान बताया कि जून 2025 से अब तक 0 से 6 महीने की आयु के 65 बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हुई है, जो राज्य के लिए बेहद शर्मनाक है।

“2006 से आदेश जारी, फिर भी स्थिति जस की तस”
अदालत ने कहा कि सरकार पिछले 19 वर्षों से इस मुद्दे पर निर्देश प्राप्त कर रही है, लेकिन रिपोर्टों और वास्तविक स्थिति में बड़ा अंतर दिखता है। न्यायालय ने टिप्पणी की— “कागज़ों में सब ठीक दिखाया जा रहा है, जबकि जमीनी हालात भयावह हैं। यह सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाता है। यह सिर्फ आंकड़ों का मामला नहीं, बल्कि मानव जीवन का प्रश्न है।” अदालत ने यह भी पूछा कि जब वर्षों से चेतावनी दी जा रही है, तो कुपोषण से होने वाली मौतों को रोकने में नाकामी क्यों बनी हुई है?
वरिष्ठ अधिकारियों को तलब किया
न्यायालय ने जन स्वास्थ्य, आदिवासी विकास, महिला एवं बाल विकास तथा वित्त विभाग के प्रधान सचिवों को 24 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया है। साथ ही, चारों विभागों को अब तक उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।
डॉक्टरों की कमी पर सरकार को सुझाव
अदालत ने आदिवासी क्षेत्रों में डॉक्टरों की भारी कमी का मुद्दा उठाया और सलाह दी कि— “कठिन क्षेत्रों में काम करने वाले डॉक्टरों को अतिरिक्त वेतन या विशेष प्रोत्साहन दिया जाए, ताकि वे वहां सेवा देने के लिए तैयार हों।” पीठ ने साफ कहा कि सरकार के पास इस समस्या से निपटने की कोई ठोस रणनीति नहीं दिखती और जवाबदेही तय करना ज़रूरी है, क्योंकि यह मुद्दा सिर्फ प्रशासनिक नहीं, बल्कि पूरी तरह मानवीय संवेदनाओं से जुड़ा है।
मेलघाट का पुराना दर्द
अमरावती जिले का मेलघाट क्षेत्र वर्षों से कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं की कमजोरी और मातृ-शिशु मृत्यु दर जैसे मुद्दों से जूझ रहा है। 2006 से अदालत के निर्देशों के बावजूद हालात में खास सुधार नहीं हुआ है। जून से नवंबर 2025 के बीच 65 बच्चों की मौत ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।


