नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें केंद्र सरकार से महिला आरक्षण कानून को तुरंत लागू करने की मांग की गई है। फिलहाल यह कानून केवल सीमा-निर्धारण (delimitation) प्रक्रिया पूरी होने के बाद लागू होना तय है — और यह प्रक्रिया अभी तक शुरू भी नहीं हुई है।

यह मामला जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ के सामने आया। कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि महिला आरक्षण को लागू करने की दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं और इसकी समय-सीमा क्या होगी।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि सरकार ने तो संसद में 33% महिला आरक्षण का कानून पारित कर दिया, लेकिन इसे एक ऐसी प्रक्रिया से जोड़ दिया है, जिसका आरंभ ही अनिश्चित है। उन्होंने कहा, “जनगणना तक नहीं हुई है, और डिलिमिटेशन उसी के बाद होता है। ऐसे में आरक्षण लागू होने का कोई स्पष्ट समय नहीं दिखता।”
कोर्ट का दृष्टिकोण
सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि किसी कानून को कब लागू किया जाए, यह निर्णय सरकार का होता है — अदालत केवल यह जानना चाह सकती है कि इसे लागू करने की योजना या प्रस्ताव क्या है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि संभव है सरकार इसे “वैज्ञानिक आंकड़ों” के आधार पर लागू करना चाहती हो।
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने जवाब दिया, “जब सरकार ने संसद में यह कानून पारित किया, तो यह मानना उचित होगा कि उनके पास आवश्यक डेटा पहले से उपलब्ध था।”
अब सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है कि महिला आरक्षण कानून लागू करने की समयसीमा क्या होगी और डिलिमिटेशन प्रक्रिया शुरू करने की योजना कब है। अगली सुनवाई में केंद्र को इस संबंध में अपना पक्ष स्पष्ट करना होगा।


