आज ही के दिन, 06 नवंबर 1985, हिंदी सिनेमा ने अपने सबसे संजीदा और बहुमुखी कलाकारों में से एक — संजीव कुमार को खो दिया था। अपनी हर भूमिका में जान डाल देने वाले इस महान अभिनेता को भले ही अब चार दशक बीत चुके हों, लेकिन उनका अभिनय आज भी दर्शकों के दिलों में जिंदा है।

जन्म और आरंभिक जीवन
हरिहर जेठालाल जरीवाला, यानी हमारे संजीव कुमार, का जन्म 09 जुलाई 1938 को गुजरात के सूरत में हुआ था। साधारण परिवार से आने वाले हरिभाई बचपन से ही रंगमंच की दुनिया में रचे-बसे थे। मुंबई आकर उन्होंने इंडियन नेशनल थिएटर से अभिनय की बारीकियाँ सीखीं। थिएटर की दुनिया में उन्हें सब प्यार से “हरिभाई” कहा करते थे — एक ऐसा नाम जो बाद में अभिनय का पर्याय बन गया।
फिल्मी सफर की शुरुआत
संजीव कुमार ने अपने करियर की शुरुआत 1960 में फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ से की थी। उनकी सबसे बड़ी खूबी थी — हर किरदार को सच्चाई से जीना।
चाहे ‘शोले’ के ठाकुर का दृढ़ चेहरा हो, ‘आंधी’ का भावनात्मक राजनेता, या ‘अंगूर’ का डबल रोल — हर रूप में वे दर्शकों के दिलों पर छा गए।
‘कोशिश’ और ‘नमकीन’ जैसी फिल्मों में उनका अभिनय इतनी गहराई लिए था कि आज भी उन्हें “भावनाओं का कलाकार” कहा जाता है।
अपने करियर में उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया और दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुए।
संजीव कुमार की निजी दुनिया
संजीव कुमार की निजी ज़िंदगी हमेशा सादगी भरी रही। उनका नाम अभिनेत्री सुलक्षणा पंडित से जुड़ा, लेकिन यह रिश्ता मंज़िल तक नहीं पहुंच पाया।
वे अपने निजी जीवन को कभी चर्चा में नहीं लाना चाहते थे — शायद इसलिए उनके जीवन की कहानी उनके अभिनय से ही बयां होती है।
अंतिम सफर
06 नवंबर 1985 को, महज़ 47 साल की उम्र में, संजीव कुमार दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को अलविदा कह गए।
उनकी कमी आज भी महसूस होती है — क्योंकि संजीव कुमार सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि भावनाओं के शिल्पी थे।
यादों में हमेशा ज़िंदा रहेंगे ‘हरिभाई’
संजीव कुमार का सिनेमा आज भी अभिनय सीखने वालों के लिए पाठशाला है। उनका सफर इस बात का प्रमाण है कि सच्चा कलाकार वही होता है, जो पर्दे पर नहीं, दिलों में जगह बनाता है।


