महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले और दमदार नेतृत्व के लिए जाने जाने वाले बालासाहेब ठाकरे का निधन 17 नवंबर को हुआ था। अपनी कड़ी हिंदुत्ववादी विचारधारा और बेबाक रवैये के कारण उन्हें ‘हिंदू सम्राट’ के रूप में भी संबोधित किया जाता था। एक समय ऐसा था जब महाराष्ट्र की सत्ता के समीकरण उनके संकेतों पर ही तय होते थे। वे मंच हो या मीडिया, किसी भी मुद्दे पर खुलकर बोलने के लिए प्रसिद्ध थे।

जन्म व पारिवारिक पृष्ठभूमि
12 जनवरी 1926 को जन्मे बाल ठाकरे के पिता, केशव सीताराम ठाकरे, समाज सुधारक एवं राजनीतिक विचारक थे। पिता से ही उन्हें विचारों की स्पष्टता और नेतृत्व की सीख मिली। बाल ठाकरे ने अपने करियर की शुरुआत बतौर कार्टूनिस्ट ‘द फ्री प्रेस जर्नल’ में की। उनके तीखे राजनीतिक कार्टून ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में भी जगह पाते रहे। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपनी राजनीतिक पत्रिका ‘मार्मिक’ की शुरुआत की, जिसने आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन की नींव तैयार की।
शिवसेना गठन और राजनीतिक प्रभाव
1966 में उन्होंने शिवसेना नाम से राजनीतिक संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मराठी मानुष की आवाज़ को संगठित करना था। मुंबई में मज़दूर आंदोलनों और वामपंथी प्रभाव का संतुलन बदलने में शिवसेना ने अहम भूमिका निभाई।
1996 उनके जीवन का सबसे कठिन वर्ष साबित हुआ, जब उन्होंने पत्नी मीना ठाकरे और बेटे बिंदुमाधव को खो दिया, फिर भी वे दृढ़ता के साथ आगे बढ़ते रहे।
धीरे-धीरे राजनीतिक परिदृश्य में उनकी पकड़ मजबूत होती गई और भाजपा के साथ शिवसेना का गठबंधन हिंदुत्ववादी राजनीति की अहम धुरी बनकर उभरा। चार दशक से अधिक समय तक वे महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में रहे — कुछ के लिए प्रेरणा, तो कुछ के लिए विवाद का केंद्र। लेकिन उन्होंने जीवनभर अपने सिद्धांतों और अंदाज़ से कभी समझौता नहीं किया।
दिवंगत
17 नवंबर 2012 को बाल ठाकरे ने अंतिम सांस ली और भारतीय राजनीति का एक सशक्त अध्याय समाप्त हो गया।


