देश में लगातार बढ़ रहे हवाई किरायों, अतिरिक्त शुल्क और पारदर्शिता की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। लंबे समय से यात्रियों की शिकायतों के बाद अब अदालत ने इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार, DGCA और AERA को नोटिस जारी कर स्पष्ट जवाब देने को कहा है। अदालत ने पूछा है कि आखिर एयरफेयर को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीति और स्वतंत्र रेगुलेटरी सिस्टम क्यों नहीं बनाया गया?

याचिका में निजी एयरलाइंस पर गंभीर आरोप
सोशल एक्टिविस्ट एस. लक्ष्मीनारायणन द्वारा दाखिल जनहित याचिका में दावा किया गया है कि निजी एयरलाइन कंपनियाँ बिना किसी पारदर्शी सिस्टम के किराये में भारी बढ़ोतरी कर देती हैं, कई सेवाओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाती हैं और शिकायतों का उचित समाधान भी उपलब्ध नहीं करातीं। याचिका में इसे आम लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन बताया गया है, जिसमें समानता, स्वतंत्र यात्रा और गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार शामिल है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि एयरलाइंस किराया तय करने की प्रक्रिया, कैंसिलेशन व बैगेज लिमिट जैसे नियमों को अपनी सुविधा के अनुसार बदलती रहती हैं, लेकिन सरकार की तरफ से इस पर कोई ठोस नियंत्रण या कार्रवाई देखने को नहीं मिलती।
आवश्यकता बन चुकी हवाई यात्रा
याचिका में यह भी तर्क दिया गया कि देश के कई क्षेत्रों में हवाई यात्रा अब केवल विलासिता नहीं, बल्कि समय की जरूरत बन चुकी है। बढ़ती मांग के बीच एयरलाइंस कुछ ही मिनटों में किराये दुगुना–तिगुना कर देती हैं। साथ ही फ्री बैगेज लिमिट 25 किलो से घटाकर 15 किलो किए जाने का मुद्दा भी उठाया गया, जिसके चलते यात्रियों पर अतिरिक्त भुगतान का बोझ बढ़ गया है।
अगली सुनवाई 19 दिसंबर
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने मामले की अगली सुनवाई 19 दिसंबर तय की है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि क्या जल्द ही एयरफेयर को नियंत्रण में लाने व नियमों की निगरानी हेतु कोई स्वतंत्र रेगुलेटरी बॉडी बनाई जा सकती है।


