SC का बड़ा फैसला: राज्यपाल की भूमिका अदालत नहीं संभाल सकती, समय-सीमा तय करना असंवैधानि

विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा सहमति देने की समय-सीमा तय करने से जुड़े संवैधानिक प्रश्न पर लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना महत्वपूर्ण निर्णय सुना दिया। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि न्यायालय राज्यपाल की भूमिका में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और न ही उस पर किसी प्रकार की समय-सीमा लागू कर सकता है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सीजेआई ने फैसला पढ़ते हुए बताया कि केंद्र और राज्यों की ओर से रखे गए तर्कों का न्यायालय ने विस्तार से परीक्षण किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि—
अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास केवल तीन विकल्प हैं:
- विधेयक को मंजूरी देना,
- उसे रोककर वापस सरकार को भेजना, या
- राष्ट्रपति को संदर्भित करना।
इसके अतिरिक्त कोई “चौथा विकल्प” उपलब्ध नहीं है। हालांकि, अदालत ने यह जरूर कहा कि राज्यपाल अनिश्चित समय तक फ़ाइलें लंबित नहीं रख सकते, लेकिन समयसीमा तय करना शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत के खिलाफ होगा।
तमिलनाडु मामले में दो जजों का आदेश असंवैधानिक
अदालत ने दो जजों की उस पूर्व पीठ के निर्देश को असंवैधानिक करार दिया जिसमें तमिलनाडु के 10 विधेयकों को ‘मान्य स्वीकृति’ प्रदान कर दी गई थी। पाँच सदस्यीय पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 142 का उपयोग करते हुए न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियाँ अपने हाथ में नहीं ले सकता।
समयसीमा लगाना संविधान के लचीलेपन के विरुद्ध
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान ने राष्ट्रपति और राज्यपाल को कुछ हद तक लचीलापन प्रदान किया है, और उस लचीलेपन पर न्यायालय द्वारा समय-सीमा लगाने से संविधान की मूल भावना प्रभावित होगी।
न्यायिक समीक्षा कब संभव?
पीठ ने कहा कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के निर्णयों की समीक्षा तभी की जा सकती है जब कोई विधेयक कानून का रूप ले ले। विधेयकों को मंजूरी की प्रक्रिया के दौरान न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की अनुमति नहीं है।
साथ ही, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सलाह लेने का विकल्प हमेशा मौजूद है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।
नोट: राष्ट्रपति संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट की यह राय सलाहकारी प्रकृति की है। केंद्र सरकार जस्टिस पारदीवाला के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेगी। आने वाले समान मामलों में संविधान पीठ की इस राय को ध्यान में रखा जाएगा।


