एटा वालों के लिए अब ट्रेन की सीटी सच में सुनाई देने वाली है! करीब सात दशक के इंतज़ार के बाद आखिरकार एटा–कासगंज रेल लाइन के सपने को पंख लगने वाले हैं।
पूर्वोत्तर रेलवे ने भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को हरी झंडी दिखा दी है।
16 गाँवों की लगभग 112 हेक्टेयर ज़मीन इसके लिए अधिग्रहीत की जाएगी।
जिला प्रशासन ने भी 50 करोड़ रुपये की मांग शासन को भेज दी है ताकि किसानों को उचित मुआवज़ा दिया जा सके।

थोड़ा इतिहास, थोड़ी हकीकत
याद करें — 18 जनवरी 1959, जब देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एटा रेलवे स्टेशन का शुभारंभ किया था।
उस दिन लोगों ने सोचा था कि अब रेल की रफ़्तार एटा को देश के नक्शे में चमका देगी… लेकिन सफ़र अधूरा रह गया।
70 साल, सैकड़ों मेमोरेंडम, धरने, और दिल्ली-लखनऊ के चक्कर लगाने के बाद आखिरकार उस अधूरे सफ़र को मंज़िल मिलने वाली है।
अब किसानों की बारी
लिडार सर्वे पूरा हो चुका है, ज़मीन का चिह्नांकन भी।
अब बस अधिग्रहण की प्रक्रिया और मुआवज़े की वितरण बाकी है।
अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) सत्यप्रकाश के अनुसार — “50 करोड़ रुपये की धनराशि मांगी गई है। पैसा मिलते ही 2025–26 वित्तीय वर्ष में किसानों को मुआवज़ा मिलेगा और काम आगे बढ़ेगा।”
एटा की उम्मीदें फिर ट्रैक पर!
लोगों के दिलों में फिर वही चमक है — “अबकी बार पटरियाँ सच में बिछेंगी!”
ये सिर्फ एक रेल लाइन नहीं, बल्कि एटा की विकास यात्रा की नई शुरुआत है।


