उत्तर प्रदेश के 746 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों (केजीबीवी) की व्यवस्थाओं को मजबूत करने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने निगरानी व्यवस्था को और कड़ा कर दिया है। अब जिला स्तरीय अधिकारियों को प्रत्येक सप्ताह अपने निरीक्षण का विस्तृत लेखा-जोखा सौंपना अनिवार्य होगा। इसके लिए विभाग ने एक तयशुदा फॉर्मेट जारी किया है, जिसमें यह बताना होगा कि किस विद्यालय का निरीक्षण किया गया, वहां क्या कमियां सामने आईं, क्या सकारात्मक पहलें दिखीं और सुधार के लिए मौके पर क्या कदम उठाए गए।

शिकायत के बाद तेज हुई कार्रवाई
हाल ही में राजधानी लखनऊ स्थित कुछ केजीबीवी छात्राओं की शिकायतों के बाद प्रदेशभर में इन विद्यालयों की व्यवस्थाओं की समीक्षा शुरू की गई थी। समीक्षा बैठकों में अफसरों की लापरवाही सामने आने पर विभाग ने सख्ती का फैसला लिया। इसके तहत निरीक्षण प्रणाली को व्यवस्थित कर अब अधिकारियों से ठोस और नियमित रिपोर्ट मांगी जाएगी।
डीएम की समिति को भी देना होगा लेखा-जोखा
हर जिले में जिलाधिकारी द्वारा गठित तीन सदस्यीय समिति भी इसी फॉर्मेट के तहत अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंपेगी। रिपोर्ट में यह स्पष्ट करना होगा कि निर्धारित निरीक्षण लक्ष्य पूरे किए गए या नहीं। यदि निरीक्षण नहीं हुआ तो कारण भी बताना होगा।
सुरक्षा और जागरूकता पर विशेष फोकस
रिपोर्ट में विद्यालयों की दीवारों पर बाल अधिकार संबंधी जानकारियां, पाक्सो एक्ट की धाराएं और हेल्पलाइन नंबर लिखे होने की स्थिति का विवरण देना होगा। साथ ही यह भी बताना होगा कि छात्राओं को इन विषयों की जानकारी दी गई है या नहीं। मीना मंच द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रम, सेफ्टी टूल्स के प्रयोग और विभागीय योजनाओं की प्रगति का पूरा ब्योरा भी अनिवार्य होगा।
व्यवस्थाओं की जमीनी पड़ताल
समग्र शिक्षा के उप निदेशक डॉ. मुकेश कुमार सिंह के अनुसार, नियमित स्थलीय निरीक्षण से व्यवस्थाओं में काफी सुधार आएगा। रिपोर्ट के जरिए यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वार्डन के बाहर रहने की स्थिति में दो पूर्णकालिक शिक्षिकाएं विद्यालय में मौजूद हों, गार्ड-चौकीदार व चपरासी समय पर ड्यूटी कर रहे हों, गेट पर एंट्री रजिस्टर नियमित अपडेट किया जा रहा हो और सीसीटीवी कैमरे लगातार काम कर रहे हों। किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई की जाएगी।
लक्ष्य – छात्राओं की सुरक्षा और बेहतर माहौल
विभाग का कहना है कि इस नई व्यवस्था का उद्देश्य केवल रिपोर्ट जुटाना नहीं बल्कि छात्राओं को सुरक्षित, व्यवस्थित और संवेदनशील शैक्षणिक वातावरण उपलब्ध कराना है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की लापरवाही की गुंजाइश न रहे।


