केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने बुधवार को कहा कि अक्टूबर में आई निर्यात गिरावट के बाद नवंबर में भारतीय निर्यात ने मजबूत वापसी की है। उनका कहना है कि दोनों महीनों के आंकड़ों को मिलाकर देखने पर कुल निर्यात में सकारात्मक वृद्धि दर्ज हुई है।

उद्योग संगठन सीआईआई के एक कार्यक्रम से इतर मीडिया से बात करते हुए गोयल ने बताया कि नवंबर में वस्तु निर्यात में हुई वृद्धि, अक्टूबर में आई गिरावट से अधिक रही है। उन्होंने कहा कि वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के बावजूद भारत का निर्यात मजबूत बना हुआ है। हालांकि, उन्होंने नवंबर के सटीक आंकड़ों का खुलासा नहीं किया। आधिकारिक व्यापार आंकड़े 15 दिसंबर को जारी किए जाएंगे।
गौरतलब है कि अमेरिकी शुल्क वृद्धि के असर से अक्टूबर में निर्यात करीब 11.8 प्रतिशत घट गया था। इसी दौरान सोने के बड़े पैमाने पर आयात से व्यापार घाटा बढ़कर रिकॉर्ड 41.68 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।
रुपये के डॉलर के मुकाबले 90 का स्तर पार करने के सवाल पर गोयल ने भरोसा जताया कि देश की आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही में 8.2 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि, लंबे समय में सबसे कम खुदरा महंगाई, मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार और निवेश में निरंतर इजाफा अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है।
व्यापार समझौतों की प्रगति पर उन्होंने बताया कि भारत कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, ओमान, चिली और पेरू सहित कई साझेदार देशों से बातचीत चल रही है और जल्द ही अंतरराष्ट्रीय सहयोग से जुड़े कुछ सकारात्मक एलान देखने को मिल सकते हैं।
सीआईआई सम्मेलन को संबोधित करते हुए गोयल ने वैश्विक व्यापार को “राजनीतिक हथियार” की तरह इस्तेमाल किए जाने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि ऐसे माहौल में भारत को कई रणनीतिक उत्पादों में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम तेज करने होंगे।
उन्होंने आयात शुल्क बढ़ने, निर्यात प्रतिबंधों और कच्चे माल की आपूर्ति रुकने से देश की औद्योगिक गतिविधियों पर पड़ रहे असर की ओर भी ध्यान दिलाया। गोयल ने उद्योगों से अपील की कि वे अपनी आपूर्ति शृंखला की कमजोरियों को जल्द पहचानें और किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भरता से बचें।
उन्होंने चीन पर बढ़ती निर्भरता को लेकर चिंता जताते हुए कहा कि बीते 15 वर्षों में भारत के औद्योगिक आयात में चीन की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो चुकी है। ऐसे में नवाचार को बढ़ावा, सप्लाई चेन में विविधता और घरेलू मैन्युफैक्चरिंग को सशक्त बनाना समय की जरूरत है।


