आगरा। महिला वनडे विश्व कप में भारत की ऐतिहासिक जीत ने पूरे देश को गर्व से भर दिया है, लेकिन शाहगंज के राधावल्लभ इंटर कॉलेज में इस खुशी की गूंज कुछ और ही है। वजह है — दीप्ति, वही लड़की जिसने कभी इसी स्कूल के मैदान में अपने सपनों की पहली गेंद फेंकी थी।
विद्यालय में उल्लास, शिक्षक भावुक
दीप्ति के पुराने विद्यालय में आज मानो त्यौहार का माहौल है। कक्षाओं में पढ़ाई की जगह तालियां और मिठाइयाँ बाँटी जा रही हैं।
सामाजिक विज्ञान के शिक्षक लालाराम याद करते हैं — “कक्षा 6 से 8 तक मैंने दीप्ति को पढ़ाया। वह हमेशा समय की पाबंद, अनुशासित और मेहनती रही। आज उसकी सफलता देखकर लगता है जैसे हमारी मेहनत भी सफल हो गई।”
विज्ञान शिक्षक स्वप्नेश शर्मा कहते हैं — “दीप्ति प्रयोगशाला में जितनी गंभीर रहती थी, उतनी ही ऊर्जा उसके खेल में दिखती थी। वह बचपन से ही खेल और पढ़ाई दोनों में संतुलन की मिसाल थी।” प्रधानाचार्य वीरेश कुमार ने बताया कि विद्यालय में बच्चों के बीच अब दीप्ति ‘रोल मॉडल’ बन चुकी हैं। “दीप्ति का समर्पण इस पीढ़ी के लिए प्रेरणा है। उसने साबित कर दिया कि बड़े सपनों के लिए छोटे कस्बे कोई बाधा नहीं होते।”

कभी डांटती थीं, अब कहती हैं— ‘चलो मैच देखते हैं!’
दीप्ति के मौसेरे भाई आकाश पचौरी मुस्कराते हुए बताते हैं — “पहले मौसी सुशीला सुमित को क्रिकेट खेलने पर खूब डांटती थीं। उन्हें लगता था कि खेल कर कुछ नहीं होगा। पर जब सुमित ने दीप्ति को कोचिंग देना शुरू किया, तो वही मौसी हर मैच पर सबसे पहले टीवी ऑन करती हैं। अब तो मोहल्ले की हर महिला दीप्ति का मैच देखती है।”
मिट्टी की खुशबू से जुड़ी कहानी
दीप्ति के पड़ोसी भगवान सिंह शर्मा के अनुसार, “वह तो खेल में ही खोई रहती थी। बचपन में प्लास्टिक के बैट से खेलती थी और अपने भाई सुमित की हर चाल को गौर से देखती थी। क्रिकेट उसके लिए शौक नहीं, जीने का तरीका था। मोहल्ले में सब उसे ‘छोटी कप्तान’ कहते थे।”
शर्मा हँसते हुए जोड़ते हैं, “जब बाकी लड़कियाँ गुड़िया खेलती थीं, दीप्ति विकेट जमाती थी। उसे तो बस खेल से ही मतलब था। और वही लगन आज भारत को विश्व विजेता बना गई।”
अब शाहगंज की पहचान दीप्ति
आज शाहगंज के हर कोने में एक ही नाम गूंज रहा है — दीप्ति शर्मा।
विद्यालय से लेकर मोहल्ले तक, हर चेहरा गर्व से दमक रहा है। वो लड़की, जिसने कभी प्लास्टिक के बैट से शुरुआत की थी, अब भारतीय क्रिकेट की नई पहचान बन चुकी है।


