जयपुर के नीरजा मोदी स्कूल में कक्षा 4 की 9 वर्षीय छात्रा अमायरा की मौत के मामले में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की जांच रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल में सुरक्षा प्रबंधन, बाल संरक्षण नीति और संवेदनशील मामलों से निपटने में बड़े पैमाने पर कमी पाई गई है। 1 नवंबर को अमायरा ने स्कूल की चौथी मंजिल से छलांग लगाई थी, जिसके बाद उसकी मौत हो गई थी।

लगातार 18 महीने तक सहती रही उत्पीड़न
जांच में एक महत्वपूर्ण तथ्य सामने आया कि छात्रा लंबे समय से सहपाठियों द्वारा उत्पीड़न का शिकार थी। इस दौरान उसे कई बार आपत्तिजनक और यौन संदर्भों वाले शब्दों का सामना करना पड़ा।
मदद की पुकार अनसुनी
मौत वाले दिन अमायरा कई बार अपनी क्लास टीचर पुनीता शर्मा के पास गई और मदद मांगी। रिपोर्ट में कहा गया कि शिक्षिका ने उसकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि क्लास में उस पर चिल्लाईं। सीसीटीवी फुटेज में भी दिखा कि सुबह वह सामान्य थी, लेकिन 11 बजे के बाद वह एक डिजिटल स्लेट पर दिखाए गए कंटेंट से असहज हो गई थी। इसके बावजूद उसे न तो काउंसलर के पास भेजा गया और न ही उसकी मानसिक स्थिति पर ध्यान दिया गया।
माता-पिता की शिकायतों की भी अनदेखी
रिपोर्ट स्कूल की उदासीनता के कई उदाहरण सामने लाती है—
- सितंबर में, पिता द्वारा की गई शिकायत को शिक्षक ने यह कहकर टाल दिया कि बच्ची को “दूसरों के साथ घुलना-मिलना सीखना चाहिए।”
- अक्टूबर में, एक लड़के द्वारा सार्वजनिक रूप से अमायरा का गलत चित्रण करने पर भी स्कूल समन्वयक ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
- पिछले साल मई में, मां द्वारा दी गई शिकायत पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
जांच समिति ने कहा कि स्कूल प्रशासन और शिक्षक दोनों को बार-बार होने वाले उत्पीड़न की जानकारी थी, लेकिन किसी भी स्तर पर प्रभावी हस्तक्षेप नहीं किया गया।
टीचर की लापरवाही को बताया मुख्य कारण
सीबीएसई का निष्कर्ष बेहद कड़ा रहा। रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रा की मौत “शिक्षक की लापरवाही, संवेदनशीलता की कमी और समय पर प्रतिक्रिया न देने” का प्रत्यक्ष परिणाम है।
समय पर मदद मिलती, तो घटना टल सकती थी।
भविष्य के लिए कड़े कदमों की सिफारिश
सीबीएसई ने मांग की है कि स्कूलों में—
- बच्चों की सुरक्षा को लेकर सख्त नीतियां लागू हों,
- बुलिंग और उत्पीड़न पर सक्रिय निगरानी हो,
- और छात्रों के लिए भरोसेमंद सहायता प्रणाली तैयार की जाए।
रिपोर्ट के अनुसार, यह घटना स्कूलों में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर गंभीर सुधारों की जरूरत को रेखांकित करती है।


