बीएलओ को राहत: सुप्रीम कोर्ट ने घटाने को कहा काम का बोझ, राज्यों से मांगा अतिरिक्त कार्यबल

देश के 12 राज्यों में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के दौरान बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) पर बढ़ते कार्यभार को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को अहम निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा है कि बीएलओ पर काम का बोझ कम करने के लिए राज्यों को तुरंत अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने आदेश दिया कि जिन बीएलओ ने सही और ठोस वजह बताते हुए एसआईआर ड्यूटी से छूट मांगी है, उनके अनुरोधों पर गंभीरता से विचार किया जाए। आवश्यकता पड़ने पर ऐसे कर्मियों की जगह अन्य कर्मचारियों की तैनाती भी की जाए।
कोर्ट ने साफ कहा, “यदि जरूरत है तो इस कार्य के लिए राज्य सरकारों को पर्याप्त मानव संसाधन उपलब्ध कराना ही होगा।”
यह टिप्पणी तमिल अभिनेता से नेता बने विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कझगम (टीवीके) की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। याचिका में चुनाव आयोग द्वारा बीएलओ पर की जा रही अनुशासनात्मक और आपराधिक कार्रवाई को चुनौती दी गई थी। पार्टी का आरोप था कि भारी कार्यभार के कारण ड्यूटी पूरी न कर पाने वाले कर्मियों पर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 32 के तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं।
टीवीके की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत को बताया कि एसआईआर के दबाव में अधिकांश बीएलओ — जो शिक्षक और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता होते हैं — मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं, यहां तक कि कुछ मामलों में उनकी मृत्यु भी हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग के अधिकारी ड्यूटी में चूक के नाम पर एफआईआर तक दर्ज करा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सहमति जताते हुए कहा कि जब तक एसआईआर की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है कि वे चुनाव आयोग के निर्देशों को पूरा करने के लिए पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध कराएं ताकि बीएलओ पर अनावश्यक दबाव न पड़े।


