नई दिल्ली — सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद भी न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने विश्राम का रास्ता नहीं चुना। 76 वर्ष की उम्र में भी वह देश के कई महत्त्वपूर्ण आयोगों और समितियों की अगुवाई कर रही हैं — जिनका दायरा बिजली से लेकर समान नागरिक संहिता और वेतन आयोग तक फैला हुआ है। न्यायमूर्ति देसाई भारतीय न्यायपालिका में अपनी निर्भीकता, निष्पक्षता और आपराधिक कानून की गहरी समझ के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने उस ऐतिहासिक पीठ में भी भाग लिया था, जिसने 26/11 मुंबई आतंकी हमले के दोषी अजमल कसाब की मौत की सज़ा को बरकरार रखा था। वह 2012 में न्यायमूर्ति आफ़ताब आलम की अध्यक्षता वाली उस बेंच का हिस्सा भी थीं, जिसने सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ प्रकरण में सीबीआई की याचिका खारिज करते हुए अमित शाह को राहत दी थी। 29 अक्टूबर 2014 को वह सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त हुईं।
अनेक आयोगों की कमान
सेवानिवृत्ति के बाद न्यायमूर्ति देसाई को लगातार एक के बाद एक संवैधानिक व प्रशासनिक दायित्व सौंपे गए। उन्होंने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal for Electricity) की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और 2017 के अंत तक इस पद पर रहीं। इसके बाद उन्हें अग्रिम निर्णय प्राधिकरण (Authority for Advance Ruling) की अध्यक्षता सौंपी गई, जहां उन्होंने 2019 तक काम किया। इसी दौरान उन्हें 2018 में लोकपाल खोज समिति का नेतृत्व करने का दायित्व मिला, जिसे बाद में अगस्त 2023 में पुनर्गठित किया गया।

परिसीमन आयोग और यूसीसी की भूमिका
अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद मार्च 2020 में केंद्र सरकार ने उन्हें जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया। इस आयोग ने मई 2022 में अंतिम रिपोर्ट सौंपी, जो बाद में राज्य में विधानसभा चुनाव की नींव बनी। उसी वर्ष उत्तराखंड सरकार ने राज्य के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का मसौदा तैयार करने हेतु न्यायमूर्ति देसाई की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति गठित की। समिति ने अपनी रिपोर्ट हाल ही में सरकार को सौंपी है। रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, फरवरी 2025 में गुजरात सरकार ने भी उन्हें राज्य में समान नागरिक संहिता की संभावनाओं पर अध्ययन करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का प्रमुख बनाया।
भारतीय प्रेस परिषद और आठवां वेतन आयोग
इसके अलावा, वह भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India) की भी अध्यक्ष हैं — यह पद उन्हें जून 2022 में दिया गया था। अब केंद्र सरकार ने उन्हें एक और बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी है — आठवां केंद्रीय वेतन आयोग (8th Central Pay Commission)। इस आयोग में उनके साथ आईआईएम बैंगलोर के प्रोफेसर पुलक घोष (पार्ट-टाइम सदस्य) और पेट्रोलियम सचिव पंकज जैन (सदस्य सचिव) शामिल हैं। आयोग को 18 महीनों के भीतर केंद्रीय कर्मचारियों के वेतनमान, पेंशन और अन्य भत्तों की समीक्षा कर अंतिम सिफारिशें प्रस्तुत करनी हैं।
एक मिसाल के रूप में
न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई का कार्यकाल भारतीय न्यायिक और प्रशासनिक व्यवस्था में नैतिकता, दक्षता और निरंतर सेवा भावना की मिसाल माना जा रहा है।
सेवानिवृत्ति के एक दशक बाद भी उनकी भूमिका इस बात का प्रमाण है कि “सेवा” केवल पद तक सीमित नहीं, बल्कि दृष्टिकोण और प्रतिबद्धता से तय होती है।


